अतीत की बातें न जाने वो दिन कैसे होंगे मोबाईल के बिन जब रहते होंगे कैसै देते होंगे अपनी खबर जब रहते होंगे वीरान शहर सुबह डाकिये को चिट्ठी दिया तो देता होगा दोपहर न जाने वो दिन कैसे होंगे जब रहते होंगे घर से बाहर साधनो की भी कमी होगी पर कम न होगा लोगों में प्यार सीधे साधे लोग होंगे और अद्भुत होगा उनका व्यवहार कम होती होगी दुनिया दारी और सीमित होंगे सबके यार दो वक्त की रोटी भी नहीं तो देते होंगे सबको प्यार आनाजो की भी कमी होगी पर व्वहारिक होगा सभ्य समाज उधारी का भी नियम होगा तो नहीं लेते होंगे अपनो से ब्याज उन दिनों की मैं कल्पना करू तो दुःख होता है सबको आज न जाने वो दिन कैसे होंगे जब प्यार से गले लगाते होंगे न करते होंगे हिन्दू मुस्लिम न होता होगा जातिवाद भाईचारे से रहते होंगे सब ना होता होगा कोई विवाद न जाने वो दिन कैसे होंगे जब होता होगा सीमित अखबार खबरों की भी कमी होगी पर न देते होंगे झूठी समाचार जनमत की भी कमी होगीपर सच्चे होंगे पत्रकार पता परिचय कम होगा पर आपस मे होगा प्रेम व्यवहार न जाने वो दिन कैसे होंगे जब मिलते होंगे सबके विचार ✍प्रवीण प्रकाश प्रवीण प्रकाश