जब से बदले हैं रंग परदे के छुप गए दाग़ चाँद चेहरे के इस लिए भी वो कुछ नहीं कहता लोग क़ायल हैं उसके लहजे के आईने आइनों में दिखते थे इतने चेहरे थे एक चेहरे के मैंने देखे हैं सैकड़ों सूरज आज क़ाबिल नहीं हैं ज़र्रे के कौन रस्सी को डाल देता है काम कुछ और भी हैं पंखे के हम को मंज़िल तलाश करती है हम मुसाफ़िर हैं उसके रस्ते के ~Aadarsh Dubey ©Aadarsh Dubey जब से बदले हैं रंग परदे के छुप गए दाग़ चाँद चेहरे के इस लिए भी वो कुछ नहीं कहता लोग क़ायल हैं उसके लहजे के आईने आइनों में दिखते थे इतने चेहरे थे एक चेहरे के