आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ बेबस सी जिंदगी, बेबस सफर हुआ उल्टा या सीधा, चक्र तो चला निकले घर से दो रोटी के वास्ते आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ। विकट परिस्थिति लंबे रास्ते, मंजिल बड़ी है दूर बैल नहीं खुद जुता है, इंसान कितना मजबूर दोष किसे दें कौन है दोषी, मानव मानव से डरा हुआ । आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ। निकले तो थे कमाने, महलों सी रोनकें न झोपड़ी रही, ना सर पर रही छतें सोने को है ना बिस्तर, अटैची पर सो रहे बच्चों का सफर खिलौनों पे तय हुआ। आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ। खामोशियों में खौफनाक आवाजें आ रहीं सड़कों में गलियों में मौत मंडरा रही मृत्यु के चक्रव्यूह में फिर कौन जा रहा मौत के सन्नाटे में नजर ना आ रहा। आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ। जीवन और मृत्यु का, मन में युद्ध चल रहा कल क्या होगा ना पता सोच डर रहा फिर भी दिलों में उम्मीद का दिया जल रहा आज हर दिल का घमंड चूर है हुआ। आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ आज फिर घर प्रस्थान तो हुआ। Shalini Saxena, ©Shalini geetika #आजफिरघरप्रस्थानतोहुआ #Shalinigeetika