ध्यान में आसपास की आवाजें बाधा देती है, क्या करें? कुछ मित्र मुझे आकर कहते हैं कि हमें सब आवाजें सुनाई पड़ती है। यह कब बंद होगी?यह कभी बंद नहीं होना है। आपको बेहोश नहीं होना है कि आपको आवाजें सुनाई न पड़े। नहीं, ध्यान आपको आवाजें सुनाई पड़ना बंद होने से नहीं आएगा। आवाजें सुनाई पड़ रही है, आपके भीतर कोई रिएक्शन, कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही, बस ध्यान का संबंध इतने से है। एक आदमी आपके पड़ोस में चिल्ला रहा है, आपको कुछ भी नहीं हो रहा, आप सुन रहे हैं और कुछ भी नहीं हो रहा।एक बहन ने मुझसे आकर कहा कि दौपहर के मौन के आखिरी पंद्रह मिनट में उसके ह्रदय की धड़कन बहुत बढ़ गई। इतनी आवाजें सुनाई पड़ने लगीं कि वह घबड़ा गई, उसे लगा कि वह निकल कर भाग जाए।आवाजें सुनाई न पड़ें, यह तो मूर्छा होगी। आवाजें सुनाई पड़ें और हम निकल कर भागने की प्रतिक्रिया करें, यह सामान्यता होगी। आवाजें सुनाई पड़ें और हम सुनें, और सिर्फ साक्षी और द्रष्टा रह जाएं, यह ध्यान होगा।आपको मूर्छित नहीं हो जाना है। जो भी हो रहा है वह आपको सब पता चलेगा, लेकिन स्वप्नवत हो जाएगा। जब तक हम प्रतिक्रिया करते हैं, तभी तक कोई चीज हमें यथार्थ मालूम पड़ती है। जैसे ही हम रिएक्शन बंद करते, सब चीजें स्वप्नवत हो जाती है।जैसे एक आदमी आपको गाली दे रहा है। उसकी गाली तभी तक यथार्थ मालूम होती है जब उत्तर में आप भी गाली देने की आतुरता से भर जाएं। अगर आपके भीतर सिर्फ उसकी गाली सुनाई पड़ती है, गूंजती है और निकल जाती है और कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं होती, सिर्फ आप जानते हैं, सुनते हैं, देखते हैं और कुछ भी नहीं करते, तो आपको गाली स्वप्न में सुनाई पड़ी मालूम पडे़गी और वह आदमी विक्षिप्त मालूम पड़ेगा जो गाली दे रहा है। उस पर नाराज होने का कोई सवाल नहीं है। ध्यान बेहोशी नहीं है। ध्यान पूरी जागरूकता से अप्रतिक्रिया, नान - रिएक्शन में उतर जाना है। तब जगत जैसा है वैसा ही चलेगा - पक्षी गीत गाएंगे, लोग चिल्लाएंगे, सड़क पर कोई गुजरेगा - आप सुनने वाले, जानने वाले, द्रष्टा, साक्षी रह जाते हैं ।
आपका अपना भाई -Amar Bairagi