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चिल्लर भर खुशियाँ, डॉलर की तरह ग़म हैं..! दुःख के ज

चिल्लर भर खुशियाँ,
डॉलर की तरह ग़म हैं..!
दुःख के जैसे,
पर्यायवाची हम हैं..!

सूखे हैं बहकर आंसू ,
फिर भी आँखें नम हैं..!
ऊपर से दिखते हैं बेशक़ ख़ुश,
अंदर पूरा सैलाब-ऐ-ग़म है..!

बंजर हो गई है दिल की जमीं,
खुशियों की बारिश से मरहूम हम हैं..!
भरा है दुःख का कुआँ पूरा,
खुशियां बहुत कम हैं..!

लुटती है महफ़िल जैसे,
यूँ नाम से हमारे..!
दुःख की महफ़िल में,
छाये बस हम ही हम हैं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #outofsight #chillarbharkhushiyan