गद्दा तकिया सब मखमल का पर नींद का आना बाकी है सांसे तो है चलती बराबर बस जी के दिखाना बाकी है किसी के देख के आंसू भी वो कुछ नहीं बोले ये मुर्दा है शहर में सब बस जान का जाना बाकी है नींद का आना बाकी है