रूखे बालों में..तेरे पैरों में लगे रास्ते के धूलों में आँखों के निचे पड़े काले से साए में दिन दोपहर रात शाम के किसी भी वक्त मे तूम मुझे उन्हें छूने की इजाज़त देगी तुम तो मेरी सुख ही सुख हो क्या तुम मेरी दुख बनोगी तुम क्या मेरी शुष्क आंखों की आंसू बनोगी आधी आधी रात को बज उठने वाली मेरे मोबाइल की ध्वनि बनोगी तुम क्या मेरी वीरान सी दोपहरिया की निर्जनता तोड़ती हुई डाकिए के दाएं हाथ से लगातार बजने वाली मेरे दरवाजे की कुंडी बनोगी ? एक पीले लिफ़ाफ़े में कबर्ड के पास डायरी के नीचे सबसे छुपा कर रखी हुई मेरी राज़ बनोगी ? तुम क्या मेरे सीने की शून्य सी हो चुकी सांसो को एक इतनी बड़ी करने आओगी.... जो मेरे दिल से तुम्हारे दिल जितनी लंबी हो बोलो न क्या तुम मेरे श्वास नली की सांस बनोगी ? अपने नरम गुदाज़ मख़मली हाथों की एक मीठी अहसास बनोगी...? थोड़ी सी खुशी...पर अपने सारे कष्ट दोगी...बोलो न मेरी हमसफ़र बनोगी ? अपनी आंखों से ही मुझे काट कर खा जाओ....एक सिंहनी की दहाड़ बनोगी... अग्निपरीक्षा के इस जर्द पीलापन लिए एक बोझल शाम में बिना किए ही जो तुमने निभाया था... बोल न क्या तुम वो वादा बनोगी ? क्या तुम सिर्फ मेरी होगी..... क्या तुम सिर्फ मेरी होगी ? ©Aqs...Dev #mere banoge #Health