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हे पुरुष तु अपने आप को मर्द समझता है अरे थू है

हे पुरुष तु अपने आप को  मर्द समझता है  
अरे थू है तेरी ऐसी मर्दानगी पर जो एक औरत की  इज्जत ना कर सके
जो राह में चलते अकेली लड़की को नहीं छोड़ता
अरे तु तो इतना गीर गया है कि 3 महिने की मासुम को भी नहीं छोड़ता
बस तु इतना बता दे
औरत के जीस्म से नीकलता है तु
औरत के पेट में पलता है तु
औरत की जवानी भी खाता है तु
और तु अपने आप को मर्द कहता है
जो औरत अपनी सुंदरता तयाग देती है तुझे इस दुनिया में लाने के लिए
तु उसी कोख को गाली देता है

हे पुरुष तु अपने आप को मर्द समझता है
अरे तेरी कया औकात है 
अगर औरत ना होती तु कया तेरा नामों निशान भी नहीं होता

__ by ritusingh ##poem #are #thu #hai #teri
हे पुरुष तु अपने आप को  मर्द समझता है  
अरे थू है तेरी ऐसी मर्दानगी पर जो एक औरत की  इज्जत ना कर सके
जो राह में चलते अकेली लड़की को नहीं छोड़ता
अरे तु तो इतना गीर गया है कि 3 महिने की मासुम को भी नहीं छोड़ता
बस तु इतना बता दे
औरत के जीस्म से नीकलता है तु
औरत के पेट में पलता है तु
औरत की जवानी भी खाता है तु
और तु अपने आप को मर्द कहता है
जो औरत अपनी सुंदरता तयाग देती है तुझे इस दुनिया में लाने के लिए
तु उसी कोख को गाली देता है

हे पुरुष तु अपने आप को मर्द समझता है
अरे तेरी कया औकात है 
अगर औरत ना होती तु कया तेरा नामों निशान भी नहीं होता

__ by ritusingh ##poem #are #thu #hai #teri