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काश चाहत का भी इम्तेहान होता एक तरफ होती वो एक तर

काश चाहत का भी इम्तेहान होता एक तरफ होती वो  एक तरफ मैं होता बो लिखती अपने दिल की किताब के पन्नों को खोलकर और मैं लिखता अपने दिल के पन्नों को खोलकर तब बताता उसको मैं कि बो आई है जिसके लिए यहां वो तड़प रहा है उसके लिए वहां लेकिन चाहत में इम्तेहान कहां  (अगर आपको ये पूरी कबिता सुननी he to मुझे फ़ॉलो करें )or YouTube channel par subscribe Karen uska link comment Box me he

©Amit Yadav1
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