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पल्लव की डायरी भर आयी आँखे,उस बाप की जो दो वक्क्त

पल्लव की डायरी
भर आयी आँखे,उस बाप की
जो दो वक्क्त की रोटी ना जुगाड़ सका
लानत अपने को देकर, जबानी में मुरझा गया
कितनी बड़ी अर्थव्यवस्था में
पिच्यासी परसेंट पांच किलो अनाज पर जिंदा है
इन्हें पकाने के लिये देखो विनोद
तेल मसाले सिलेंडर आम आदमी पाने में शर्मिंदा है
मार कर रोजगार के रास्ते,जनता को
अपने जूते की नोक पर रखने के इरादे है
सक्षम ना बन जाये कोई
सब की जेब जी एस टी से काटने वाले है
                                                 प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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