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#एक_नवीन_विचार... शायद आज कल के बच्चे न समझ पाएं

#एक_नवीन_विचार...

शायद आज कल के बच्चे न समझ पाएं पर अपनी उम्र के लोग तो ये सब जानते ही है समझते भी है और शायद अधिकतर लोग आज भी याद करते होंगे, बचपन में हमें सुलाने के लिए या यूं कहें सोने से पहले मां या दादी अम्मा के द्वारा सुनाई जाने वाली लोरी या कहानियां, जो हमे बहुत लुभाती थी, जिनसे कभी भी हम उबते नहीं थे और आज भी उन्हे याद करके खुद को आनंदित ही महसूस करते हैं।।

ऊबते हम कब हैं जब हमें कुछ नया नहीं मिलता, आज के समय में हर कोई बस अपने हिसाब से सामने वाले को चाहता है इस लिए उसे किसी की बातें रोचक, किसी का साथ मजेदार तब तक लगता है जब तक सामने वाला उसके हिसाब से चलता है, वरना हमें वो पकाऊ लगने लगता है, और धीरे धीरे हम उससे पीछा छुड़ाने के बहाने ढूंढने लगते हैं... पर हम ये नहीं सोच पाते की वो जैसा है और हम खुद जैसे हैं वैसे ही रह कर एक दूसरे का साथ दे बातें करे जिस मोड़ पे आके सामने वाला बोलना बंद करे आपको नया न लगे वहां आप खुद आगे बढ़ कर उस इंसान को बदलने से अच्छा खुद अपने को जो अच्छी लगे उस बात की शुरवात करें हो सकता है सामने वाले को आपकी नवीन बातों से कुछ ऐसा मिले जो संकोच वश वो कह नहीं पा रहा हो आपसे और वो फिर से एक नई ऊर्जा के साथ आपके साथ जुड़ने लगे।।

पर आज के जमाने में ये होना बहुत ही कठिन है क्योंकि हर किसी को बस सामने वाले से वैसा चाहिए जैसा उसका मन है वो खुद से कभी पहल नहीं करना चाहते उन्हे लगता है जैसे उनका आत्मसम्मान कम हो जायेगा, और इस वजह से न जाने कितने रिश्ते खत्म हो जाते है बिन किसी वजह के....। ये आज के जमाने में ठीक वैसे ही है जैसे कुछ लोग जब ज्यादा आधुनिक हो जाते है तो अपने पुराने विचारों वाले माता पिता की कद्र नहीं करते, उनसे बात करना कम कर देते हैं, अरे भाई आप उनसे विचार व्यक्त करें नए नए उन्हे भी सीखने में मजा आयेगा और आपको भी एक अलग अनुभव होगा अच्छा लगेगा, पर नहीं हम तो खुद को आधुनिक मानते है कि जो हमारे स्तर का नहीं हम उससे बात ही नहीं करेंगे...। कि हम जिस स्तर पे हैं उससे नीचे के स्तर पर जाना जैसे हमारा अपमान हैं, हमे बाते अपने स्तर या उससे ऊपर के स्तर की ही करनी है, भले फिर आप के साथ जो अच्छे लोग हो वो छूट क्यों न जाए।।

अरे जो आपसे जुड़ा है या जुड़ रहा है नया नया हो सकता है उसका स्तर वो न हो जो आपका है या नया होने के कारण वो एक सीमा से बंधा समझ रहा हो खुद को, तो उससे बात करके उसे वहां तक लाने का प्रयास क्यों नहीं किया जाना चाहिए अपितु किसी नए को ढूंढने से अच्छा है जो जुड़ा है उसे ही पूरा खुलने का मौका दीजिए।।

बहुत से लोग होते हैं जो अपनी सब बातें कह बोल चुके होते हैं या उनके पास ऐसा कुछ नहीं होता जो नया हो, वो खुद से परेशान हो चुके होते है, और ऐसे लोग खुद से जिन्दगी से हताश होने लगते हैं, और खुद को हीन भावना से देखने लगते हैं और ऐसे लोगों के ही मन में खुद को खत्म कर देने के विचार आने लगते हैं।।

किसी को अकेलापन तब लगने लगता है जब उसके पास नवीन विचार ही नहीं रहते तो वो खुद को कमजोर समझने लगते हैं और खुद के लिए बस एक ही विकल्प उन्हे नजर आने लगता है आत्महत्या... ये सोचना ही बहुत पीड़ादायक होता है इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है.. पर आखिर किसी को इस हद तक पहुंचने ही क्यों दिया जाए.।।

मेरे विचार से तो जब आप किसी से जुड़े और आपको लगे की अब रोज रोज सामने वाला वही बातें कर रहा है, या चाह कर भी कुछ नया नहीं कह पा रहा, तो उसे अपनी और से एक नवीन बात की, किसी कार्य की, रिश्ते की या कुछ भी नवीन शुरवात देने पे विचार करना चाहिए न की उसे छोड़ के उसके हाल पे आगे बढ़ने के.. क्योंकि आपके द्वारा दिया गया नवीन विचार या बात उसके मन से हीन भावना, खुद को निम्न समझने की भावना, या यूं कहे खुद को खत्म करने के विचार को पूर्ण विराम दे सकता हैं, और इस तरह उसे एक नई दिशा में जीवन जीने का आकर्षण मिल जायेगा..।।

इसलिए अगर आपके आस पास मिलने में या आपके अपनों में कोई ऐसा लगे फिर चाहें वो आपका मित्र हो घर का कोई हो जिसकी बातें तनावग्रस्त हैं या फिर वो खुद को दूसरों से निम्न समझ रहा है, उसकी बातें कुछ उलझी सी लग रहीं है तो उससे बातें करिए वो जो भी उल्टा सीधा कहे उसे इत्मीनान से थोड़ा समय देके सुनिए.. और उसे एक नवीन विचार दीजिए जिससे वो सकारात्मक रह पाए, और अपने अन्दर आने वाले निम्न विचारों को दूर कर पाए... 🥰

#मन_में_एकाएक ❤️
#सादर_आभार 🙏🙏

#शिव

©Shivendra Gupta 'शिव' #selfhate
#एक_नवीन_विचार...

शायद आज कल के बच्चे न समझ पाएं पर अपनी उम्र के लोग तो ये सब जानते ही है समझते भी है और शायद अधिकतर लोग आज भी याद करते होंगे, बचपन में हमें सुलाने के लिए या यूं कहें सोने से पहले मां या दादी अम्मा के द्वारा सुनाई जाने वाली लोरी या कहानियां, जो हमे बहुत लुभाती थी, जिनसे कभी भी हम उबते नहीं थे और आज भी उन्हे याद करके खुद को आनंदित ही महसूस करते हैं।।

ऊबते हम कब हैं जब हमें कुछ नया नहीं मिलता, आज के समय में हर कोई बस अपने हिसाब से सामने वाले को चाहता है इस लिए उसे किसी की बातें रोचक, किसी का साथ मजेदार तब तक लगता है जब तक सामने वाला उसके हिसाब से चलता है, वरना हमें वो पकाऊ लगने लगता है, और धीरे धीरे हम उससे पीछा छुड़ाने के बहाने ढूंढने लगते हैं... पर हम ये नहीं सोच पाते की वो जैसा है और हम खुद जैसे हैं वैसे ही रह कर एक दूसरे का साथ दे बातें करे जिस मोड़ पे आके सामने वाला बोलना बंद करे आपको नया न लगे वहां आप खुद आगे बढ़ कर उस इंसान को बदलने से अच्छा खुद अपने को जो अच्छी लगे उस बात की शुरवात करें हो सकता है सामने वाले को आपकी नवीन बातों से कुछ ऐसा मिले जो संकोच वश वो कह नहीं पा रहा हो आपसे और वो फिर से एक नई ऊर्जा के साथ आपके साथ जुड़ने लगे।।

पर आज के जमाने में ये होना बहुत ही कठिन है क्योंकि हर किसी को बस सामने वाले से वैसा चाहिए जैसा उसका मन है वो खुद से कभी पहल नहीं करना चाहते उन्हे लगता है जैसे उनका आत्मसम्मान कम हो जायेगा, और इस वजह से न जाने कितने रिश्ते खत्म हो जाते है बिन किसी वजह के....। ये आज के जमाने में ठीक वैसे ही है जैसे कुछ लोग जब ज्यादा आधुनिक हो जाते है तो अपने पुराने विचारों वाले माता पिता की कद्र नहीं करते, उनसे बात करना कम कर देते हैं, अरे भाई आप उनसे विचार व्यक्त करें नए नए उन्हे भी सीखने में मजा आयेगा और आपको भी एक अलग अनुभव होगा अच्छा लगेगा, पर नहीं हम तो खुद को आधुनिक मानते है कि जो हमारे स्तर का नहीं हम उससे बात ही नहीं करेंगे...। कि हम जिस स्तर पे हैं उससे नीचे के स्तर पर जाना जैसे हमारा अपमान हैं, हमे बाते अपने स्तर या उससे ऊपर के स्तर की ही करनी है, भले फिर आप के साथ जो अच्छे लोग हो वो छूट क्यों न जाए।।

अरे जो आपसे जुड़ा है या जुड़ रहा है नया नया हो सकता है उसका स्तर वो न हो जो आपका है या नया होने के कारण वो एक सीमा से बंधा समझ रहा हो खुद को, तो उससे बात करके उसे वहां तक लाने का प्रयास क्यों नहीं किया जाना चाहिए अपितु किसी नए को ढूंढने से अच्छा है जो जुड़ा है उसे ही पूरा खुलने का मौका दीजिए।।

बहुत से लोग होते हैं जो अपनी सब बातें कह बोल चुके होते हैं या उनके पास ऐसा कुछ नहीं होता जो नया हो, वो खुद से परेशान हो चुके होते है, और ऐसे लोग खुद से जिन्दगी से हताश होने लगते हैं, और खुद को हीन भावना से देखने लगते हैं और ऐसे लोगों के ही मन में खुद को खत्म कर देने के विचार आने लगते हैं।।

किसी को अकेलापन तब लगने लगता है जब उसके पास नवीन विचार ही नहीं रहते तो वो खुद को कमजोर समझने लगते हैं और खुद के लिए बस एक ही विकल्प उन्हे नजर आने लगता है आत्महत्या... ये सोचना ही बहुत पीड़ादायक होता है इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है.. पर आखिर किसी को इस हद तक पहुंचने ही क्यों दिया जाए.।।

मेरे विचार से तो जब आप किसी से जुड़े और आपको लगे की अब रोज रोज सामने वाला वही बातें कर रहा है, या चाह कर भी कुछ नया नहीं कह पा रहा, तो उसे अपनी और से एक नवीन बात की, किसी कार्य की, रिश्ते की या कुछ भी नवीन शुरवात देने पे विचार करना चाहिए न की उसे छोड़ के उसके हाल पे आगे बढ़ने के.. क्योंकि आपके द्वारा दिया गया नवीन विचार या बात उसके मन से हीन भावना, खुद को निम्न समझने की भावना, या यूं कहे खुद को खत्म करने के विचार को पूर्ण विराम दे सकता हैं, और इस तरह उसे एक नई दिशा में जीवन जीने का आकर्षण मिल जायेगा..।।

इसलिए अगर आपके आस पास मिलने में या आपके अपनों में कोई ऐसा लगे फिर चाहें वो आपका मित्र हो घर का कोई हो जिसकी बातें तनावग्रस्त हैं या फिर वो खुद को दूसरों से निम्न समझ रहा है, उसकी बातें कुछ उलझी सी लग रहीं है तो उससे बातें करिए वो जो भी उल्टा सीधा कहे उसे इत्मीनान से थोड़ा समय देके सुनिए.. और उसे एक नवीन विचार दीजिए जिससे वो सकारात्मक रह पाए, और अपने अन्दर आने वाले निम्न विचारों को दूर कर पाए... 🥰

#मन_में_एकाएक ❤️
#सादर_आभार 🙏🙏

#शिव

©Shivendra Gupta 'शिव' #selfhate