बे-फ़िक्र हवाओं सा मेरा मन बंजारा न जाने ये किस और बह चला है रही न इसे अब मंज़िल की तमन्ना ख़ुशियों से मिट रहा उसका फासला है बेमानी हो चली है ज़माने की बंदिश चंचल मन की न जाने क्या रज़ा है मुड़ गए क़दम हमारे उसी दिशा में जिस ओर हमकों ये लेकर चला है इसकी फ़ितरत में है बस चलते जाना इन हवाओं का न कोई ठौर न ठिकाना अपनी ही धुन में मग्न बावरा ये ठहरना तो इसने कभी नहीं जाना सफ़र ज़िंदगी का सहल हो जाता है जब किसी का मन बंजारा हो जाता है इस बंजारे को भी प्यार हो जाता है जब विसाल खुदा से इसका हो जाता है ♥️ Challenge-780 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।