युद्ध === रुक रुक कर बजाता सायरन थर थर सहमता दिल कहीं धम्म से गिरी एक बिल्डिंग धुंए में गुम होता इलाका भागते लोग टूटती उम्मीद बिलखते बच्चे बिखरता परिवार सब ओर विध्वंस नाचता काल! माना युद्ध में जीत जाएगा अहं लेकिन मर जाएगा मानव परमाणु, जैविक हथियारों के कंठ पर सवार वह करता रहेगा प्रहार एक दिन निर्जीव सीमा के सबसे ऊँचे टीले पर फहराएगा विजय पताका किंतु इस जीत पर जिसकी आँखें हो सजल बंद हो चुकी होंगी वह सारी नज़र। कल जहाँ मेला था इसका उसका दैनिक झमेला था उस ज़मीन पर रेंगते हैं बख़्तरबंद वाहन और टैंक झुलसे शाखों से नीचे परी है मरी चिड़ियाँ उन्होंने कहाँ बनाया था युद्ध के मद्देनजर कोई बंकर! धू धू जलती इंसानियत के बीच कौन विजय का जश्न मनाएगा? स्वर्ग को मरघट बना कर कौन जीत का जाम छलकाएगा? अतृप्त भटकती आत्माओं की चीख युद्ध के विजताओं को मुबारक शमशान और गिद्धों का शोर जहरीली हवा का नशा! होश आए तो देखना आसपास कौन बचा है? सिवाय असले और बारूद के क्या कहीं अब भी कोई फूल खिला है? ✍ रागिनी प्रीत ©Ragini Preet #War #world #peace #poem #Hindi #thought #feather