जानता है दिल मुमकिन नहीं है तेरा मेरा साथ, कैसे संभाले हम दिल के बहके बहके जज्बात। बीच में है तेरे मेरे मजहब और धर्म की दीवार, समझता नहीं दिल कैसे समझाएंँ अपनी बात। तू भी है बेचैन वहांँ और मैं भी हूंँ परेशान यहांँ, समझ नहीं पा रहे हैं कैसे काबू में करें हालात। तुझसे ही जुड़ा है मेरे दिल का चैन और करार, तुझसे शुरू होता है मेरा दिन खत्म होती है रात। दुनियाँ के लिए ना सही दिल से तो तुम मेरे हो, तुम हो मेरे लिए जहाँ की सबसे अनमोल सौगात। ना हो सके इस जन्म में मेरे तो कोई बात नहीं, अगले हर जन्मों में बस तुम्हीं लेकर आना बारात। इस जन्म में समझा लिया कि मुमकिन नहीं साथ, इसके बाद तो "एक सोच" ना कर पाएगी बर्दाश्त। -"Ek Soch" ♥️ Challenge-531 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।