शाख से पत्ते नोचकर ,अब कहाँ फाड़ता हूँ मैं l यूँ ज़मी को कुरेदकर ,अब नाम कहाँ उछारता हूँ मैं l कि ठोकरों ने सिखा दिया ,इंसानियत -ऐ-सबक , धूल के पत्थर को भी ,अब पैर कहाँ मारता हूँ मैं l छोटे शायर अब पैर कहाँ मारता हूँ मैं l