कभी अपने पर हंसती हूँ कभी समाज पर हंसती हूँ संविधान पर या अपनी सरकार पर खुशी से हंसती हूँ या गम के हर मुकाम पर कॉमेडी के अपराध पर या हंसी के ख्वाब पर क्या हुआ जमाने को आग लगी चारों ओर कौन हैं सूत्रधार फैली आग जिन इशारों पर कौन जल रहा हैं यहां या कौन जला रहा घुली हुई हैं भांग यहाँ हर एक सवाल में हर शख्स खौफ खाए हंसना हैं गुनाह यहां आओ अब लौट चले अपने पुराने भारत में जहां भाईचारा और आजादी बतियाने की क्यों डरे कोई अपना विचार बतलाने में न महंगाई का तांडव न डर बेरोजगारी का खुल के हंसे बोले बैठे परिवार फिर चौपाल में।। ©Ehssas Speaker #Laugh at whom