पथरीले रास्ते पर उन पथरीले रास्तो ने मेरे पैरों को जलाया था पर मैं ये कैसे भूल जाऊं की रात्री के उस अँधेरे में उसने ही पैरो को सहलाया था। क्या हुआ जो पाव जला पैरों को चलना तो आ गया ज़िन्दगी के पथरीले रास्तो पे गिरके संभलना तो आ गया। नीरज की कलम से...... पथरीले रास्ते।