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गधे गुलाब जामुन खा रहे है भरी महफ़िल में वो छा रहे

गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है
कैसा ज़माना आया है,साखी
उजाले को भी तम खा रहे है

जिंदगी की इस रेस में साखी,
घोड़े,गधे की लात खा रहे है
गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है

गधे ये बात भूलते जा रहे है
दरिया चाहे कितना बड़ा हो,
प्यास तो झरने ही बुझा रहे है
चंदन ही खुश्बु फैला रहे है

गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है
आता जाता उन्हें कुछ नही,
फिर भी हम ताली बजा रहे है

गधों की तारीफ बंद भी करो
खुद को भीतर से शेर करो
शेर ही इतिहास बना रहे है
गधे बुजदिलो को भा रहे है

गधे तो मिठाई खाकर भी,
अपनी बीपी,सुगर बढ़ा रहे है
वीरों के आगे वो रोते जा रहे है
गुनाहों की वो माफी मांग रहे है

घोड़े तो कुछ पल जीकर भी,
रोशनी की रोशनी फैला रहे है
बनकर दीपक कुछ पल का ही,
वो अंधेरा जीवन मिटा रहे है
दिल से विजय गधे गुलाब जामुन खा रहे है
गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है
कैसा ज़माना आया है,साखी
उजाले को भी तम खा रहे है

जिंदगी की इस रेस में साखी,
घोड़े,गधे की लात खा रहे है
गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है

गधे ये बात भूलते जा रहे है
दरिया चाहे कितना बड़ा हो,
प्यास तो झरने ही बुझा रहे है
चंदन ही खुश्बु फैला रहे है

गधे गुलाब जामुन खा रहे है
भरी महफ़िल में वो छा रहे है
आता जाता उन्हें कुछ नही,
फिर भी हम ताली बजा रहे है

गधों की तारीफ बंद भी करो
खुद को भीतर से शेर करो
शेर ही इतिहास बना रहे है
गधे बुजदिलो को भा रहे है

गधे तो मिठाई खाकर भी,
अपनी बीपी,सुगर बढ़ा रहे है
वीरों के आगे वो रोते जा रहे है
गुनाहों की वो माफी मांग रहे है

घोड़े तो कुछ पल जीकर भी,
रोशनी की रोशनी फैला रहे है
बनकर दीपक कुछ पल का ही,
वो अंधेरा जीवन मिटा रहे है
दिल से विजय गधे गुलाब जामुन खा रहे है

गधे गुलाब जामुन खा रहे है #कविता