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जिनकी प्रतिक्षा में हमनें गुजारे जीवन के जाने कितन

जिनकी प्रतिक्षा में हमनें गुजारे
जीवन के जाने कितने पल छिन।
ख्याल जिनका आते ही हो जाते
मन में आशाओं के दीप रोशन।
खबर जिनके आने की पाते ही
सूना शहर जैसे हो जाता वृंदावन।
सुमधुर बंशी स्वर सुन पिया के
हर्षित हो उठता मन का आंगन।
दर्शन की प्यासी राधारानी को
जैसे मिल जाता उसका मोहन।
धानी हो जाती स्वेत चुनरिया
पाकर उनका नेहमय आलिंगन।
सुरभित हो जाती सांसों की गली
तन-मन हो जाता चंदन चंदन।
झिलमिलाते नैनों के दो तारे
खिल उठता उजड़ा हृदय चमन।

- निलम

©Nilam Agarwalla
  #“प्रतिक्षा”

#“प्रतिक्षा” #कविता

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