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#OpenPoetry मैं हर रोज खुद से मिलती हूं। इठलाती ह

#OpenPoetry मैं हर रोज खुद से मिलती हूं।

इठलाती हुई शौर्य के पीछे
छिपे उस सहमे मन में,
खिलखिलाती हुई हंसी के पीछे
उदासी के दुबके क्षण में!

भीड़ की गौरवपूर्ण वाक्यों से दूर
तन्हाई के आलोचनाओं के शब्द मेे,
अग्रसर होते प्रयत्न के पथ पर
हौसलों से अलग निंदित वक्तव्य में!

मेरी डायरी के पन्नों में सिमटे
आंसुओं से बदलते अल्फ़ाज़ में,
खोती हुई भावपूर्ण संगीत
और मेरी आवाज़ में!

मैं हर रोज खुद से मिलती हूं। मैं हर रोज खुद से मिलती हूं।

इठलाती हुई शौर्य के पीछे
छिपे उस सहमे मन में,
खिलखिलाती हुई हंसी के पीछे
उदासी के दुबके क्षण में!

भीड़ की गौरवपूर्ण वाक्यों से दूर
#OpenPoetry मैं हर रोज खुद से मिलती हूं।

इठलाती हुई शौर्य के पीछे
छिपे उस सहमे मन में,
खिलखिलाती हुई हंसी के पीछे
उदासी के दुबके क्षण में!

भीड़ की गौरवपूर्ण वाक्यों से दूर
तन्हाई के आलोचनाओं के शब्द मेे,
अग्रसर होते प्रयत्न के पथ पर
हौसलों से अलग निंदित वक्तव्य में!

मेरी डायरी के पन्नों में सिमटे
आंसुओं से बदलते अल्फ़ाज़ में,
खोती हुई भावपूर्ण संगीत
और मेरी आवाज़ में!

मैं हर रोज खुद से मिलती हूं। मैं हर रोज खुद से मिलती हूं।

इठलाती हुई शौर्य के पीछे
छिपे उस सहमे मन में,
खिलखिलाती हुई हंसी के पीछे
उदासी के दुबके क्षण में!

भीड़ की गौरवपूर्ण वाक्यों से दूर
shardajha6539

Sharda Jha

Bronze Star
New Creator