ये मासूमियत बड़ी गुमसुम सी होती है कब खो जाये पता नहीं बस एक नादानी ही है जो रूठें हुए लोगो को मना भी सकती है और मनवा भी सकती है तेरी मासूमियत मे कुछ इस तरह उलझ के फस गए हम की पता ही नहीं चला प्यार कब हो गया और नादानी की तो ऐसी हद पार की तुमने मुझे पता ही नहीं चला की कब मै तेरे इश्क़ मे बेवफा होके तेरी हर बात मान गया #दिल बेचारा