यूं रोते रहने से तक़दीर नहीं बदलने वाली ज़िंदगी ज़रुर बदलती है मौत नहीं बदलने वाली मेरी हर शाम दुखों का बवंडर लाती है लगता है ज़िंदगी मेरी खुशियों से नहीं बदलने वाली उनके दिए तोहफ़े ग़म बनकर रुलाते हैं मेरी तन्हाईयाँ अब महफ़िलों से नहीं बदलने वाली मेरी ख़ुशी का बगीचा दुखों का पतझड़ ने उजाड़ दिया लगता है इसमें अब कोई भी ऋतु नहीं आने वाली ©Richa Dhar #Tulipsतक़दीर