इस बदलते दौर में सब कुछ बदल गया। अब न गरूकुल है। न गुरू द्रोणाचार्य न अर्जुन जैसे छात्र। एक ज़माना था जब शिक्षक पूजनीय होते थे। और छात्र अनुशासित। इस बदलते दौर की कुछ ऐसी आंधी चली है मेरे दोस्तों, की शिक्षक अनुशासित व छात्र पूजनीय ग्राहक हो गया है। शिक्षक अपनी दुख भरी व्यथा सुनाये तो किसे, न शिक्षण संस्थाएँ उसके साथ है न बच्चों के माता पिता। अब शिक्षक बेचारा लाचार व विवश हो गया है, अब दौर बदल सा गया है। अब केवल पढा़ना उसका काम नही, फाइलें तैयार करना, रजिस्टरों में रिकॉर्ड रखना, हमेशा online रहकर माता पिता को update करना भी उसी का काम है। अब वो पहले से ज्यादा परेशान व व्यस्त हो गया है। क्योंकि अब दौर बदल सा गया है। आज के शिक्षक