हाथों की लकीरों में तो नहीं पर इस दिल की दीवार हो तुम, मेरे इस दिल की ईमारत इक तेरे ही दम से सलामत है। किसी नदी के दो छोर जैसी है जिंदगी अपनी, ना दीदार मयस्सर है, तू तो बस मीलों दूर की चाहत है। तेरा नाम दिल के संदूक में क़ैद लिए फ़िरते हैं, मैं ज़िंदा हूँ पर अब जीती नहीं, तू इकलौती मेरी मुस्कुराहट है। चले आना किसी रोज़ रुख़ हवा का मोड़ कर, तेरी ठंडी पड़ी यादों को मेरे आंसुओं की गर्माहट है। उगता सूरज उम्मीदें जगाएं हैं, डूबता उन्हें रौंद जाए है, खाली हाथों को मेरे कमी तेरे हाथों की,मेरे रूह की इक ये ही तिलमिलाहट है। क्या कहतीं ये हवा अरे ओ पाखी? क्या मेरे प्यार की इस हवा में कोई आहट है ? ♥️ Challenge-688 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।