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आज यहांँ ना जाने कल कहांँ, वक़्त के साथ मुसाफ़िर ब

आज यहांँ ना जाने कल कहांँ,
वक़्त के साथ मुसाफ़िर बदलता है अपनी मंज़िल,
ना होता है उसका कोई पता ना ही कोई ठिकाना,
वह तो जहांँ बसा वही उसका आशियाना।

-Nitesh Prajapati  👉🏻 प्रतियोगिता- 622
विषय 👉🏻 🌹"मुसाफ़िर"🌹
🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I

🌟कृपया font size छोटा रखें जिससे wallpaper ख़राब नहीं लगे और Font color का भी अवश्य ध्यान रखें ताकि आपकी रचना visible हो। 

🌟 पहले सावधानी पूर्वक "CAPTION" पढ़ें और दिए हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए अपने ख़ूबसूरत शब्दों एवं भावों के साथ अपने एहसास कहें।
आज यहांँ ना जाने कल कहांँ,
वक़्त के साथ मुसाफ़िर बदलता है अपनी मंज़िल,
ना होता है उसका कोई पता ना ही कोई ठिकाना,
वह तो जहांँ बसा वही उसका आशियाना।

-Nitesh Prajapati  👉🏻 प्रतियोगिता- 622
विषय 👉🏻 🌹"मुसाफ़िर"🌹
🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I

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