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चलनक्षम उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्य

चलनक्षम

उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्याल हूँ मै।

दूर चमकती रौशनी की झुठलाई कोई आस हूँ मै।

जब सर्वस्व क्षणभंगुर है तो बेवजह क्यों त्रास हूँ मै ?

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  चलनक्षम

उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्याल हूँ मै।

दूर चमकती रौशनी की झुठलाई कोई आस हूँ मै।

जब सर्वस्व क्षणभंगुर है तो बेवजह क्यों त्रास हूँ मै ?

चलनक्षम उस परेशां से दिमाग़ का छितरा कोई अजीब ख्याल हूँ मै। दूर चमकती रौशनी की झुठलाई कोई आस हूँ मै। जब सर्वस्व क्षणभंगुर है तो बेवजह क्यों त्रास हूँ मै ?

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