एक बहू की सोचनीय पहचान जो सबके लिए लाजवाब और लज़ीज़ पकवान बनाती है एक पांव पे खड़े होकर चोटी से लेकर टखने तक बहते हुऐ पीसने में भीगी हुई... हाय रे! उस पापा की दुलारी को आखिर में ठंडी रोटी भी सबके खाने के बाद ही नसीब होती है... कोई ममता भरी नज़र से फूटे मुंह भी ये नहीं टोकता बेटी तो छोड़ो बहू कहकर भी नहीं कहते सबको गरमा - गर्म परोसने वाली कभी तू भी गर्म खा लिया कर... ©Jyoti Jangra Mandavriya #Sas #ससुराल #बहु