#मांकाआंचल / रविकांत यादव __________________________ आंचल मां तेरा मुझको, लगता है जैसे मरहम, रखवाली बुरी बला से ,ये करता है मेरी हरदम, मौसम था वो गर्मी का,सूरज ने थी तपिश दिखाई, छोटा सा मैं तेरी गोदी में, तूने आंचल की छांव उड़ाई। तेरा पहलू मां लगता था तब, मुझको बस एक सहारा, फिरता था पल्लू पकड़े मां, आंगन का हर एक किनारा। दुनिया के ये झूठे रिश्ते, उलझाते नहीं थे हमको, दिखती थी मां तेरी सूरत, मूरत हर एक में मुझको। मुझे याद है मां वो सर्दी थीं, काली रात पूस की थी छाई, था तीव्र ज्वर अत्यंत दर्द,वो घड़ी अजब सी थी आयी, सिरहाने बैठकर तेरे, माथे पर तूने मेरे, गीली पट्टी थी लगाई, लोरी और थपकी से माई, तूने मेरी पीड़ा भगाई। जी चाहता है फिर चूम ले मां, मेरे इन हाथों को , सीने से लगाकर अपने, दोहरा दे उन बातों को। बाहों में फ़िर से भर के मां, उस बचपन में लौटा दे। अपने हाथों से माई, फिर घी, गुड़, रोटी और खिला दे। मैं वयस्क हुआ,तू बृध्द हुई ,ये है जीवन की माया, करता है मां अब दिल मेरा , मैं बनके रहूं तेरी छाया। हे ईश्वर है अनुनय मेरा, कि जब जब जीवन को पाऊं, मुझे मिले सदा आंचल तेरा, तेरी कोख से सांसे पाऊ। आंचल मां तेरा मुझको, लगता है जीवनदाई, हर ग़म या तनहाई में,दिल को है ये सुखदाई। ~ रविकांत यादव