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न जाने, कब, क्या हो जाए, अब तो डर सा लगता है।। मा

न जाने, कब, क्या हो जाए,
अब तो डर सा लगता है।। 
मानव से ज्यादा मुझको अब,
दानव का भ्रम लगता है।। 
उत्तम प्राणी जो मानव था,
कर्म से कितना नीच हुआ।। 
रोटी, कपड़ा, घर की खातिर,
अब पूरा मारीच हुआ।। 
क्या होगा मानव जाति का,
प्रश्न ने मुझे डराया है।। 
मानव-मानव शत्रु बने,
मानवता-तरु कुम्हलाया है।। 

@poetryofsoul

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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