#OpenPoetry दिल धड़क के रह गया स्याह सी रात पैजण, चूड़ी और झुमकियाँ, दर्पण में खुदको निहारती मैं सबको उतार सादगी को पहनती मैं अचानक मद-मस्त हवा छू कर गुजरती हैं, और कुछ आवाज़ पहुँचती हैं, कानों को राहत देने, जैसे लोरी कोई दूर से उसकी याद बनकर पूरा बदन इत्र सा सुगंधमय करना चाह रही हो, पर थकान से भरपूर शरीर और दिल का अभी अभी जागना, ज़रा से अश्रु और नींद थके शरीर को सुला गया हाय यह बेचारा दिल, दिल धड़क के रह गया.. #OpenPoetry