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फिर से गिरुँगी मैं,फिर उठ खड़ी हो जाऊँगी जिंदगी त

फिर से गिरुँगी मैं,फिर उठ खड़ी हो जाऊँगी 
जिंदगी तेरे दिये जख्मों से,मैं हार नहीं ना मानूँगी। 
व्यथाओं को अपनी सुना,मैं सांत्वना न चाहूँगी 
फिर जीतूँगी मैं हार के,उम्मीद नयी जगाऊँगी। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-117 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 4 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
फिर से गिरुँगी मैं,फिर उठ खड़ी हो जाऊँगी 
जिंदगी तेरे दिये जख्मों से,मैं हार नहीं ना मानूँगी। 
व्यथाओं को अपनी सुना,मैं सांत्वना न चाहूँगी 
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ashagiri4131

Asha Giri

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