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२ मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्

२
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा 
चिंताओ की रेखाएं अनगिनत 
विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी
कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी
बरखा संग शीत बयार से होगी
विचारो की कालरात्रि में, भौर का विश्वास पर रखना
मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु....................... 

श्याम घटा छंट जाने के पूर्व 
तुम उनमें उष्ण आस भर देना
कह देना मेघो से अपने सब भाव
और उनमें तुम सांसे भर देना
उन सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु................ 
(लोकेंद्र की कलम से ) #लोकेंद्र की कलम से
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मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा 
चिंताओ की रेखाएं अनगिनत 
विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी
कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी
बरखा संग शीत बयार से होगी
विचारो की कालरात्रि में, भौर का विश्वास पर रखना
मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु....................... 

श्याम घटा छंट जाने के पूर्व 
तुम उनमें उष्ण आस भर देना
कह देना मेघो से अपने सब भाव
और उनमें तुम सांसे भर देना
उन सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु................ 
(लोकेंद्र की कलम से ) #लोकेंद्र की कलम से