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गलतियाँ ऐसा लगता है, बचपन ही ठीक था, न एहसास था गल

गलतियाँ
ऐसा लगता है, बचपन ही ठीक था,
न एहसास था गलतियों का न खौफ़।
खेल खेल में कुछ खराब कर देना,
फिर साफ इन्कार कर जताना रौब।
कभी किसी और की गलती छुपाना,
दोस्तों के संग होती थी खूब मौज। 
माँ की ऊँची आवाज़ सुन भागते,
सारे छुप जाते और हो जाते मौन।

इन बड़ों का तो, किस्सा ही अलग है यारों,
करते कुछ हैं और कहते कुछ हैं ये। 
बिल्ली हज को चल दी होगी कभी यारों,
दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकते हैं ये। 
कुछ करने न करने से मतलब नहीं यारों,
काम पर पानी फेरने में माहिर हैं ये। 
गर बच्चे चूं चाँ भी करें यारों,
नानी याद दिला देते हैं मिनट में ये। 

 #rztask357 #restzone #rzलेखकसमूह #गलतियाँ
गलतियाँ
ऐसा लगता है, बचपन ही ठीक था,
न एहसास था गलतियों का न खौफ़।
खेल खेल में कुछ खराब कर देना,
फिर साफ इन्कार कर जताना रौब।
कभी किसी और की गलती छुपाना,
दोस्तों के संग होती थी खूब मौज। 
माँ की ऊँची आवाज़ सुन भागते,
सारे छुप जाते और हो जाते मौन।

इन बड़ों का तो, किस्सा ही अलग है यारों,
करते कुछ हैं और कहते कुछ हैं ये। 
बिल्ली हज को चल दी होगी कभी यारों,
दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकते हैं ये। 
कुछ करने न करने से मतलब नहीं यारों,
काम पर पानी फेरने में माहिर हैं ये। 
गर बच्चे चूं चाँ भी करें यारों,
नानी याद दिला देते हैं मिनट में ये। 

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