बस कह देने से दूरियां हो जाती है क्या दिलों की हसरतें कही सो जाती है क्या, रोज़ की गुफ़्तगू बन्द कमरो में दफ़न हो तूँ अब के तन्हा किधर खो जाती है क्या, शज़र से जो टूट कर कल बिखरा कोई तूँ अब चेन की नीद से सो जाती है क्या, ख्वाइशों की कब्र पर सिसकते हुए देखा तूँ मुझ से छिप के तन्हा रो जाती है क्या जख्मों की तासीर पे अब बात न करती अब ग़ैरों के ख्यालों में खो जाती है क्या ©khyalon ka Safar बस कह देने से दूरियां हो जाती है क्या दिलों की हसरतें कही सो जाती है क्या, रोज़ की गुफ़्तगू बन्द कमरो में दफ़न हो तूँ अब के तन्हा किधर खो जाती है क्या, शज़र से जो टूट कर कल बिखरा कोई तूँ अब चेन की नीद से सो जाती है क्या,