बीते बरस में हमने कई बातें हैं सीखीं, जो सच हो बात तो लगती है तीखी तीखेपन को सौ ग्राम गुड़ खिलाओ, झगड़ा छोड़, दोस्ती कर, हाथ मिलाओ जहाँ दाल गले वहाँ तड़का लगाओ, जहाँ उम्मीद ना हो उसे भूल जाओ धीमी आँच पर सार्थक रिश्तें बनाओ, परख कर, उन्हें फिर ख़ास बतलाओ बादाम खाकर अपनी बुद्धि चलाओ, हर किसी को अपना ‘प्रिय’ ना बनाओ जलेबी सी अनोखी अपनी शख़्सियत बनाओ, कुछ तेढ़ी, कुछ मीठी पहेली बन जाओ (शेष कैप्शन में पढ़ें) बीते बरस में हमने कई बातें हैं सीखीं, जो सच हो बात तो लगती है तीखी तीखेपन को सौ ग्राम गुड़ खिलाओ, झगड़ा छोड़, दोस्ती कर, हाथ मिलाओ जहाँ दाल गले वहाँ तड़का लगाओ, जहाँ उम्मीद ना हो उसे भूल जाओ