इश्क़ में लिखे खत के जबाब जैसी हो इतनी प्यारी की किसी ख्याब जैसी हो मेरी चंद शायरी पढ़ मुझे शायर कहती हो जबकि तुम खुद शायरी की किताब जैसी हो जब शरमाकर छुपाती हो ख़ुद को मुझसे तब लगती मझको अपने नकाब जैसी हो सब कुछ भूल जाता हूँ तुम्हें देखकर ही साथी शायद तुम किसी पुरानी शराब जैसी हो ईद मुकमल हो जाती है मेरी तुम्हे देखकर क्या तुम ईद के किसी महताब जैसी हो रोशम कर दिया है आके मेरा जीवन तुमने मेरी रानी तुम तो मेरे आफताब जैसी हो इश्क़ में लिखे खत के जबाब जैसी हो इतनी प्यारी की किसी ख्याब जैसी हो मेरी चंद शायरी पढ़ मुझे शायर कहती हो जबकि तुम खुद शायरी की किताब जैसी हो जब शरमाकर छुपाती हो ख़ुद को मुझसे तब लगती मझको अपने नकाब जैसी हो सब कुछ भूल जाता हूँ तुम्हें देखकर ही साथी शायद तुम किसी पुरानी शराब जैसी हो