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प्रेम यूं तो प्रदर्शन का विषय नहीं है पर जब भी उस

प्रेम यूं तो प्रदर्शन का विषय नहीं है 
पर जब भी उसका दर्शन होता है तब दिल के हर हिस्से को छू कर पूरे मन को स्पंदित करता है। 
प्रेम शांति है अशांति नहीं फिर मन प्रेम में उद्विग्न क्यों रहता है। ये अशांति क्यों होती है ।। और ये अगर शाश्वत है तो बहुत लोगों में प्रेम समाप्त क्यों हो जाता है ।

क्या मीरा का प्रेम सच था , या राधा का या रुक्मिणी का या स्वयं माधव का 

ये कैसा प्रेम की सब के हो फिर भी सिर्फ हर एक के भी हो 

ये छलावा है या प्रेम , या ये मति भ्रम है मेरा जो अल्प ज्ञान है उस से जनित प्रश्न है।।

©Ravi Sharma
  #dhundh प्रेम यूं तो प्रदर्शन का विषय नहीं है 
पर जब भी उसका दर्शन होता है तब दिल के हर हिस्से को छू कर पूरे मन को स्पंदित करता है। 
प्रेम शांति है अशांति नहीं फिर मन प्रेम में उद्विग्न क्यों रहता है। ये अशांति क्यों होती है ।। और ये अगर शाश्वत है तो बहुत लोगों में प्रेम समाप्त क्यों हो जाता है ।

क्या मीरा का प्रेम सच था , या राधा का या रुक्मिणी का या स्वयं माधव का 

ये कैसा प्रेम की सब के हो फिर भी सिर्फ हर एक के भी हो
ravisharma5699

Ravi Sharma

Silver Star
Growing Creator

#dhundh प्रेम यूं तो प्रदर्शन का विषय नहीं है पर जब भी उसका दर्शन होता है तब दिल के हर हिस्से को छू कर पूरे मन को स्पंदित करता है। प्रेम शांति है अशांति नहीं फिर मन प्रेम में उद्विग्न क्यों रहता है। ये अशांति क्यों होती है ।। और ये अगर शाश्वत है तो बहुत लोगों में प्रेम समाप्त क्यों हो जाता है । क्या मीरा का प्रेम सच था , या राधा का या रुक्मिणी का या स्वयं माधव का ये कैसा प्रेम की सब के हो फिर भी सिर्फ हर एक के भी हो #विचार

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