रफ्ता-रफ्ता बढ़ता जाता हूं, आखिर कैसी अकुलाहट है? है मन प्रसन्न चिंतातुर भी, यह कैसी उसकी आहट है? मंजिल नहीं वहां पर कोई, है भली-भांति यह ज्ञान मुझे, स्वीकार न मुझको यह सच कड़वा, यह उनकी भी घबराहट है। अरुण शुक्ल "अर्जुन" प्रयागराज Aman kesharwani Ravi Khorwal Gaurav Kukreti anddy dubey khushi Rupam kumari 💐H@n$ik@💐 Sarla singh Sarmistha Das