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चांद तब चोर हो, न तन पे एक डोर हो। सांसे जोर जोर औ

चांद तब चोर हो, न तन पे एक डोर हो।
सांसे जोर जोर और धड़कनों का सोर हो।

दृश्य वो बिहंग हो, नैन स्वयं बंद हो,
प्रेमी दो निहंग जब, अंग संघ अंग हो।

राग रति गाती हुई राति चली जाती हो।
जब एक पहर बाकी तब प्रित गहराती हो।

जन्मों से पियासी तब स्वयं को बुझाती हो।
काम पे सवार तब रति भाती भाती हो।

©शैलेन्द्र शैनी
  #आज सखी साथ हो 3

#आज सखी साथ हो 3 #कविता

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