आँखों में दहकते ज्वाल नही , फितूर-ए-इश्क़ के अफसाने है। इस मुल्क में हो कैसे क्रांति की लहर, यहाँ आज़ाद छोड़ करीना के दीवाने है । परत दर परत भी नही खुलता शख्स अब, ईमानदार चेहरे नही सेल्फियों के ज़माने है। सुर ताल और राग रागिनियाँ नही है अब , सब और योयो , बादशाह के तराने है। शहीदों के स्मारक धूल खाते नज़र आते है, हुक्काबार इस पीढ़ी के नए-नए ठिकाने है। - "राणा" ★ © #आँखों में #दहकते #ज्वाल नही , #फितूर-ए-#इश्क़ के #अफसाने है। इस मुल्क में हो कैसे #क्रांति की #लहर, यहाँ #आज़ाद छोड़ #करीना के #दीवाने है । परत दर परत भी नही खुलता #शख्स अब, #ईमानदार चेहरे नही #सेल्फियों के ज़माने है। सुर #ताल और #राग रागिनियाँ नही है अब , सब और #योयो , #बादशाह के #तराने है।