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प्रकृति संतुलन के नियम पर चलती है। हम भी प्रकृति क

प्रकृति संतुलन के नियम पर चलती है।
हम भी प्रकृति के ही अंतर्गत आते हैं।
हमारा मन भी संतुलन को ही ढूंढता है।
जहां जिस भी जगह ये संतुलन गड़बड़ाता है
मन तुरंत संतुलन के विकल्प तलाशने लगता है।।




 अगर मन को चोट पहुंचती है तो ये दवा ढूंढने लगता है
इलाज खुशी तलाशना भी हो सकता है और 
भूलने की कोशिश कर,मन दूसरी जगह लगाना भी।
पर कभी कभी स्वभावगत, चोटिल व्यक्ति ये संतुलन चोट देने वाले को लहूलुहान कर के बनाता है।
इससे उसके अहम की जो तुष्टि होती है!!
तुम एक पत्थर उछालोगे,
हम मार मार के अधमरा कर डालेंगे।
ऐसा भी होता है संतुलन कई बार!!
प्रकृति संतुलन के नियम पर चलती है।
हम भी प्रकृति के ही अंतर्गत आते हैं।
हमारा मन भी संतुलन को ही ढूंढता है।
जहां जिस भी जगह ये संतुलन गड़बड़ाता है
मन तुरंत संतुलन के विकल्प तलाशने लगता है।।




 अगर मन को चोट पहुंचती है तो ये दवा ढूंढने लगता है
इलाज खुशी तलाशना भी हो सकता है और 
भूलने की कोशिश कर,मन दूसरी जगह लगाना भी।
पर कभी कभी स्वभावगत, चोटिल व्यक्ति ये संतुलन चोट देने वाले को लहूलुहान कर के बनाता है।
इससे उसके अहम की जो तुष्टि होती है!!
तुम एक पत्थर उछालोगे,
हम मार मार के अधमरा कर डालेंगे।
ऐसा भी होता है संतुलन कई बार!!
swakeeya2403

Swakeeya ..

New Creator

अगर मन को चोट पहुंचती है तो ये दवा ढूंढने लगता है इलाज खुशी तलाशना भी हो सकता है और भूलने की कोशिश कर,मन दूसरी जगह लगाना भी। पर कभी कभी स्वभावगत, चोटिल व्यक्ति ये संतुलन चोट देने वाले को लहूलुहान कर के बनाता है। इससे उसके अहम की जो तुष्टि होती है!! तुम एक पत्थर उछालोगे, हम मार मार के अधमरा कर डालेंगे। ऐसा भी होता है संतुलन कई बार!!