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ओ मेरे प्यारे हमराही, बड़ी दूर से हम तुम दोनों, स

ओ मेरे प्यारे हमराही,
 बड़ी दूर से हम तुम दोनों,
संग चले पग पर ऐसे,
 गाड़ी के दो पहिए जैसे।
 कहीं पंत को पाया समतल,
 कहीं-कहीं पर उबर खाबर,
 अनुकंपा प्रभु की इतनी थी,
 गाड़ी चलती रही बराबर। 
कभी हंसी थी किलकारी थी,
 कभी दर्द पीड़ा भारी थी,
कभी-कभी थोड़ी भीड़ झमेले,
 कभी मान था लाचारी थी।
 रुके नहीं पथ पर फिर भी हम,
 लिए आस्था मन में हरदम, 
पग  मजबूत होते जाते हैं ,
पथ पर बढ़ते जाते हैं।
 इतना है विश्वास प्रिय की, 
बादल यह भी छठ जाएंगे,
सफर बहुत लंबा है लेकिन,
संग तुम्हारे कट जाएंगे। दो जीवन साथी
ओ मेरे प्यारे हमराही,
 बड़ी दूर से हम तुम दोनों,
संग चले पग पर ऐसे,
 गाड़ी के दो पहिए जैसे।
 कहीं पंत को पाया समतल,
 कहीं-कहीं पर उबर खाबर,
 अनुकंपा प्रभु की इतनी थी,
 गाड़ी चलती रही बराबर। 
कभी हंसी थी किलकारी थी,
 कभी दर्द पीड़ा भारी थी,
कभी-कभी थोड़ी भीड़ झमेले,
 कभी मान था लाचारी थी।
 रुके नहीं पथ पर फिर भी हम,
 लिए आस्था मन में हरदम, 
पग  मजबूत होते जाते हैं ,
पथ पर बढ़ते जाते हैं।
 इतना है विश्वास प्रिय की, 
बादल यह भी छठ जाएंगे,
सफर बहुत लंबा है लेकिन,
संग तुम्हारे कट जाएंगे। दो जीवन साथी

दो जीवन साथी #कविता