ओ मेरे प्यारे हमराही, बड़ी दूर से हम तुम दोनों, संग चले पग पर ऐसे, गाड़ी के दो पहिए जैसे। कहीं पंत को पाया समतल, कहीं-कहीं पर उबर खाबर, अनुकंपा प्रभु की इतनी थी, गाड़ी चलती रही बराबर। कभी हंसी थी किलकारी थी, कभी दर्द पीड़ा भारी थी, कभी-कभी थोड़ी भीड़ झमेले, कभी मान था लाचारी थी। रुके नहीं पथ पर फिर भी हम, लिए आस्था मन में हरदम, पग मजबूत होते जाते हैं , पथ पर बढ़ते जाते हैं। इतना है विश्वास प्रिय की, बादल यह भी छठ जाएंगे, सफर बहुत लंबा है लेकिन, संग तुम्हारे कट जाएंगे। दो जीवन साथी