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सोचती हूँ कभी परेशान करूँ तुम्हें, फिर रोक कर ख़ुद

सोचती हूँ कभी परेशान करूँ तुम्हें, फिर रोक कर ख़ुद को, ख़ुद ही से भिड़ जाती हूँ,
ख़ुद से लड़ना और ख़ुद ही को समझाना अब आम सा हो गया है

(कैप्शन में पढ़े)


 पलकें झपकती है तो आते है कई ख़याल,
ख़यालों में तेरा ज़िक्र अब आम सा हो गया है

करवट बदलते ही कुछ बेचैनी है महसूस होती,
बेचैनियों में तेरी फ़िक्र अब आम सा हो गया है

मुलायम तकिये पर होती है रातों को बूंदाबांदी,
इन रातों में तेरा साथ ना होना अब आम सा हो गया है
सोचती हूँ कभी परेशान करूँ तुम्हें, फिर रोक कर ख़ुद को, ख़ुद ही से भिड़ जाती हूँ,
ख़ुद से लड़ना और ख़ुद ही को समझाना अब आम सा हो गया है

(कैप्शन में पढ़े)


 पलकें झपकती है तो आते है कई ख़याल,
ख़यालों में तेरा ज़िक्र अब आम सा हो गया है

करवट बदलते ही कुछ बेचैनी है महसूस होती,
बेचैनियों में तेरी फ़िक्र अब आम सा हो गया है

मुलायम तकिये पर होती है रातों को बूंदाबांदी,
इन रातों में तेरा साथ ना होना अब आम सा हो गया है
drg4424164151970

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पलकें झपकती है तो आते है कई ख़याल, ख़यालों में तेरा ज़िक्र अब आम सा हो गया है करवट बदलते ही कुछ बेचैनी है महसूस होती, बेचैनियों में तेरी फ़िक्र अब आम सा हो गया है मुलायम तकिये पर होती है रातों को बूंदाबांदी, इन रातों में तेरा साथ ना होना अब आम सा हो गया है #yqbaba #yqdidi #ख़ुद_से_लड़ना #रातों_का_जगना