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आजकल किसी की मोहब्बत नहीं इबादत सी, आजकल मोहब्बत म

आजकल किसी की मोहब्बत नहीं इबादत सी,
आजकल मोहब्बत में हर कोई शिर्क करता है।
किसी भी बंदे का कोई एक ख़ुदा नहीं है आजकल,
हर मोड़ पर आजकल नए ख़ुदा मिलते हैं।

फ़ना हो के रुतबा आशिक़ का मिलता है,
मेले में मिलते नहीं, बिकते नहीं हैं ये तमगे!
जो करो मोहब्बत तो वफ़ा रक्खो फिर,
ये मोहब्बत है! इश्क़ है! सौदागरी नहीं कोई।

इश्क़ को मरतबा मिला है 'हिसाम' इबादत का,
शर्त ये के मोहब्बत हो तो फिर इश्क़ हो जाए।
और जो इश्क़ हो जाए तो सिर्फ़ महबूब नज़र आए,
महबूब नज़र आए तो फिर कुछ और नज़र ना आए।
31/03/2024

©Hisamuddeen Khan 'hisam'
  आजकल किसी की मोहब्बत......
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