मेरे सफ़ीने ने तय कर लिया था सफ़र सारा उसको डुबोने वाला मेरा साहिल निकला बचते चले आये थे दुश्मन के तीर ओ ख़ंजर से आख़िर में मेरा मुहाफ़िज़ ही मेरा क़ातिल निकला उसके तग़ाफ़ुल पे क़सम खाई थी तर्क ए ताल्लुक़ की दोबारा नज़र पड़ी जो उसपे कमज़ोर अपना दिल निकला बहोत कुछ चीख के बयां करती थीं दो ख़ामोश आंखें पढ़ता उन्हें तो पढ़ता कौन ज़माना सारा जाहिल निकला 10/9/21