White पल्लव की डायरी प्रकृति ने भरा है धरा अम्बर को हर संसाधनों से पंछी जानवरो तक का ख्याल रखा है होती सुबह रोज,रात भी होती है उम्मीद की किरणें हर चौखट तक होती है मगर लालचों ने खाई अमीरी गरीबी की खींची है अभावो में जो पलते,उनके पल भर कैसे कटते है चौबीस घण्टे भी पहाड़ जैसे लगते है सत्ताओ के समीकरण भी लाभ हानि पर टिके है पेशेवरों के लिये सहायक बिजनिस में गरीबो के खून चूसने पर लगे है एक तरफ मेहनतों की कीमत कम दूसरी तरफ टेक्स बराबर किये हुये है हको की लड़ाई पर कानूनों के जाल में आम लोग फंसे हुये है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #GoodMorning अभावो में जो पड़े हुये है,उनके पलभर भी कैसे कटते है