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हज़ारों लाखों शब्दों से भरी किताब... कितनी ख़ामोश

हज़ारों लाखों शब्दों से 
भरी किताब...
कितनी ख़ामोशी से,
उस बुकशेल्फ में
चुप-चाप 
24 घंटे पड़ी रहती है।

...

कुछ ऐसे ही 
पड़ा हुआ हूं मैं भी...
अपने अंदर 
असंख्य शब्दों के साथ
एक इंतज़ार लिए,
अपनी ज़िंदगी के 
बुकशेल्फ पर

अनपढ़ा सा...!


....

©Prashant Shakun "कातिब" हज़ारों लाखों शब्दों से 
भरी किताब...
कितनी ख़ामोशी से,
उस बुकशेल्फ में
चुप-चाप 
24 घंटे पड़ी रहती है।

...
हज़ारों लाखों शब्दों से 
भरी किताब...
कितनी ख़ामोशी से,
उस बुकशेल्फ में
चुप-चाप 
24 घंटे पड़ी रहती है।

...

कुछ ऐसे ही 
पड़ा हुआ हूं मैं भी...
अपने अंदर 
असंख्य शब्दों के साथ
एक इंतज़ार लिए,
अपनी ज़िंदगी के 
बुकशेल्फ पर

अनपढ़ा सा...!


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©Prashant Shakun "कातिब" हज़ारों लाखों शब्दों से 
भरी किताब...
कितनी ख़ामोशी से,
उस बुकशेल्फ में
चुप-चाप 
24 घंटे पड़ी रहती है।

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