प्यार करता हूँ, लेकिन दिखाना नहीं आता; अपने ज़ख़्मो को छुपाना नहीं आता... मैं तो एक छोटा सा कतरा हूँ सागर का; मुझे यहाँ किसी को डुबाना नहीं आता... अभिमनुय की तरह ज़िन्दगी जी रहा हूँ; रणभूमी में किसी को सिखाना नहीं आता... उनके जैसा कभी नहीं बन सकता हूँ मैं; मुझे किसी का दिल दुखाना नहीं आता... हर तरफ रौशनी फैलाता हूँ इस जहाँ में; 'दीप' खुद जलता है, उसे जलाना नहीं आता... प्यार करता हूँ, लेकिन दिखाना नहीं आता; अपने ज़ख़्मो को छुपाना नहीं आता... मैं तो एक छोटा सा कतरा हूँ सागर का; मुझे यहाँ किसी को डुबाना नहीं आता... अभिमनुय की तरह ज़िन्दगी जी रहा हूँ; रणभूमी में किसी को सिखाना नहीं आता...