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परिन्दें भी देख कर है हैरान-ओ-परेशान मौसमो की

परिन्दें भी  देख  कर  है  हैरान-ओ-परेशान
मौसमो की तरह बदल रहे है जो मुसलमान

नूर-ए-इबादत  फैली  है  जो सारे जहान में
 बे-पनाह रहमतों से तेरी ऐ माह-ए-रमजान 

अपनी दुनिया  सवारने में  लगे थे जो नादान 
काफिरों की सोहबत में भूल बैठे थे जो ईमान

इबादतों में गुज़ार रहे है वो भी शाम-ओ-सहर
बे-पनाह रहमतों  से  तेरी  ऐ  माह-ए-रमजान

मस्जिद-ओ-मुसल्ला जो कल रहती थी  वीरान
बहाना-ए-वक़्त बनाकर भटक रहे थे जो इंसान

नज़र आरहे है वो भी आज बारगाह-ए-इलाही में
बे-पनाह  रहमतों  से  तेरी  ऐ   माह-ए-रमजान

दुआँओ में एक दुआँ "साबिर" की क़ुबूल करना
के रूह हो जुदा ज़िस्म से, पर न हो जुदा ईमान

-साबिर बख़्शी माह-ए-रमजान

#nojoto #wish #new #time #LifeLessons #urdupoetry #urdushayari #urduadab  तरूण.कोली.विष्ट Satyaprem Ayan khan 😊😊 Aasifa Khanam Husain Abbas
परिन्दें भी  देख  कर  है  हैरान-ओ-परेशान
मौसमो की तरह बदल रहे है जो मुसलमान

नूर-ए-इबादत  फैली  है  जो सारे जहान में
 बे-पनाह रहमतों से तेरी ऐ माह-ए-रमजान 

अपनी दुनिया  सवारने में  लगे थे जो नादान 
काफिरों की सोहबत में भूल बैठे थे जो ईमान

इबादतों में गुज़ार रहे है वो भी शाम-ओ-सहर
बे-पनाह रहमतों  से  तेरी  ऐ  माह-ए-रमजान

मस्जिद-ओ-मुसल्ला जो कल रहती थी  वीरान
बहाना-ए-वक़्त बनाकर भटक रहे थे जो इंसान

नज़र आरहे है वो भी आज बारगाह-ए-इलाही में
बे-पनाह  रहमतों  से  तेरी  ऐ   माह-ए-रमजान

दुआँओ में एक दुआँ "साबिर" की क़ुबूल करना
के रूह हो जुदा ज़िस्म से, पर न हो जुदा ईमान

-साबिर बख़्शी माह-ए-रमजान

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