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*कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,* *वो राहों पे

*कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,*
         *वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,*
*फिर ढूँढा उसे इधर उधर*    
       *वो आँख मिचौली कर*मुस्कुरा रही थी,*
*एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,*
         *वो सहला के मुझे सुला रही थी*   
*हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से*
        *मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,*
*मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया*
       *कमबख़्त तूने,*             
*वो हँसी और बोली- मैं ज़िंदगी हूँ..
     _*तुझे जीना सिखा रही थी...

©Raj Kanojiya Heart Touching 
Miss You Jindagi..

#apart
*कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,*
         *वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,*
*फिर ढूँढा उसे इधर उधर*    
       *वो आँख मिचौली कर*मुस्कुरा रही थी,*
*एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,*
         *वो सहला के मुझे सुला रही थी*   
*हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से*
        *मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,*
*मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया*
       *कमबख़्त तूने,*             
*वो हँसी और बोली- मैं ज़िंदगी हूँ..
     _*तुझे जीना सिखा रही थी...

©Raj Kanojiya Heart Touching 
Miss You Jindagi..

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